Khuwahish
Qasim Azhar, Uzma Iftikhar
कभी तूने सोचा तू क्यों रहती उदास
पास जो तू न मेरे पास
समझे ना तुझको जैसे कोई राज़
पास जो मैं न तेरे पास
कितना कुछ देखा तूने कितना कुछ ना कहा
फिर भी मैं सोचु हर पल कैसे इतना सहा
तू ना जाने तू ना माने मुझको बनाया तेरे लिए
आँसू तेरे जब है गिरते हाथ हैं मेरे उनके लिए
वक़्त और फैसले कुछ ना तेरे लिए
दिल की गरेको से तुझ तक
आ जाओ जो तू पुकारे
तेरे दिल में तब तक
जब तक तू चाहे मुस्कुराये
हसती रहे सदा
दुआ है मेरी हमेशा तू खिलती रहे
मैं कह ना पाया ये तुझसे तू महोबत थी मेरी
खुदा से मांगू बस अब तू खुश रहे