Umeed

TANZEEL KHAN

Yeah
बहोट दीनो बाद आज खुला आसमान है
खाली ये जनीन और बड़ा तापमान है
धरती ये शांत है, अंत का पैगाम है
बीमारी को भी मज़हब दे रहा इंसान है
आवाज़ कौन उठाए बेईमान तो अवाम है
अब तेरे ही हाथो में देश की ये जान है
जो वफ़ादार उनपे ही इल्ज़ाम है
वर्दी सफेद खाकी को मेरा सलाम है
अब ये ना पूछना किस ग़लती सज़ा मिली
हा पैसों से भी कीमती बनी है इनकी ज़िंदगी
ख़ुसनसीब खुद को समझो क्या हालत ग़रीब की
इंसानियत को छ्चोड़ो मर्डू के लिए जगह नही

हो कैसा ये मंज़र है
क्यूँ लग रा मुझको दर्र है
इस मर्ज़ का क्या हॉल है
सिर्फ़ रब्ब को ये खबर है
कल भी सूरज निकलेगा
रोशन होगा ये जहाँ
उमीद ही कर सकते
अब यहाँ बस यहाँ
इतना क्यूँ है हम तन्हा
बीतेगा भी ये लम्हा
कर सकते है सिर्फ़ अब हम दुआ
हम दुआ

हन मौत नही देखती क्या तेरा है मज़हब
सबर रखले तोड़ा और सिखले तू सबक
घर में ही बैठ अगर असली तू मरद
खुदा से दुआ कर हन गुनहगार बनकर
तुम्हारा भी है परिवार तोड़ा ज़िमेदार बनो
भूल के भेदभाव खुद से सवाल करो
यही वक़्त है सब एक साथ लडो
एक साथ लडो भले एक साथ मरो
यही वक़्त है सब एक साथ लडो
एक साथ लडो भले एक साथ मरो

हन इतना मुस्किल नही है!

हा कैसा ये मंज़र है
क्यू लग्रा मुजको दर्र है
इश्स मर्ज़ का क्या हॉल है
सिर्फ़ रब को ही खबर है
कल भी सूरज निकलेगा
रोशन होगा ये जहाँ
उमीद ही कर सकते
अब यहाँ बस यहाँ
इतना क्यूँ है हम तन्हा
बीतेगा भी ये लम्हा
कर सकते है सिर्फ़ अब हम दुआ
हम दुआ!

हा

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