Papa
Abhinav Shekhar
ऊँगली पकड़ के
सिखाया था
कैसे जिये ज़िंदगी
बिगड़े राहो में
हालातो से डर के
ना रुकना कभी
बुलाया खुदा ने तुम्हे
और मुझको रुलाया तभी
सिमट गया वो आंगन
जब से शाम को घर
नहीं आते हो
सिमट गया वो आंगन
जब से शाम को घर
नहीं आते हो
थम गयी मेरी खुशियां
पापा याद बहोत तुम आते हो
पापा याद बहोत तुम आते हो
पापा याद बहोत तुम आते हो
डरता भी था आपसे
पर करता बहोत प्यार था
जहा से भी लड़ता अगर
आपका साथ हर बार था
फ़र्ज़ निभाया था जो आपने
जीने का वो सार था
रब मेरे तुम थे
मेरी रूह में जो बस जाते हो
हरपल मेरे दिल में
पापा याद बहोत तुम आते हो
पापा याद बहोत तुम आते हो
पापा याद बहोत तुम आते हो