Muskan

Dikshant

अनजानी सी राहो पे तुम
अपने से बनके मिले
मंजिल से भटका मै गुम था कहीं
राहों पे ले तुम चलें
दूर थे क्‍यों हम इतने
पास तो आओ ना
रोके है मैने कब से जज़्बात भी
मुझको गले से लगाओ ना
खोनी है नीदें तुम्‍हारी बाहों मे ही
करनी है लम्‍बी बातें खाली राहों में ही
समझ तो लेते हो हर बात को
समझ लेना जब कहूँगा ख़ामोशी में ही
तुम आए हो तो
मुस्‍कान भी आयी है
तुम आए हो तो
मुस्‍कान भी आयी है

आँखों को समझाना भी है
तुम्‍हे शहर तुम्‍हारे जाना भी है
पर करना इंतजार जाना मेरा तुम बस
तुम्‍हारे उस शहर में मुझको
तो आना भी है
फिर मिलके गिनेंगे वो तारे
और चाँद के वो सारे नज़ारे
देख अगर, तारा टूटा अगर तो है ना वादा
कहता रहूँगा ये हाँ मैं
खोनी है नीदें तुम्‍हारी बाँहों में ही
करनी है लम्‍बी बातें खाली राहों में ही
समझ तो लेते हो हर बात को
समझ लेना जब कहूँगा ख़ामोशी में ही
तुम आए हो तो
मुस्‍कान भी आयी है
तुम आए हो तो
वो बात भी आयी है

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