Rooh Dekhi Hai Kabhi

GULZAR

रूह देखी है कभी
रूह को महसूस किया है
जागते जीते हुए दूधिया कोहरे से लिपट कर
साँस लेते हुए उस कोहरे को महसूस किया है
रूह देखी है कभी

या शिकारे में किसी झील पे जब रात बसर हो
और पानी के छपाकों में बजा करती हैं टल्लियाँ
सुबकियाँ लेती हवाओं के भी बैन सुने हैं

चौदहवीं-रात के बर्फ़ाब से इक चाँद को जब
ढेर से साए पकड़ने के लिए भागते हैं
तुम ने साहिल पे खड़े गिरजे की दीवार से लग कर
अपनी गहनाती हुई कोख को महसूस किया है
रूह देखी है कभी

जिस्म सौ बार जले तब भी वही मट्टी का ढेला
रूह इक बार जलेगी तो वो कुंदन होगी
रूह देखी है, कभी रूह को महसूस किया है

Wissenswertes über das Lied Rooh Dekhi Hai Kabhi von Gulzar

Wer hat das Lied “Rooh Dekhi Hai Kabhi” von Gulzar komponiert?
Das Lied “Rooh Dekhi Hai Kabhi” von Gulzar wurde von GULZAR komponiert.

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