Mur Ke Hum Khak-e-raahay Yaar Huay

Maulana Hasrat Mohani

मर के हम खाक-ए-राहे यार हुए
मर के हम खाक-ए-राहे यार हुए
सूरमा-ए-चश्म-ए-ऐतबार हुए
मर के हम खाक-ए-राहे यार हुए
सूरमा-ए-चश्म-ए-ऐतबार हुए
मर के हम खाक-ए-राहे यार हुए

मेरी महृमियों की हद ना रही
मेरी महृमियों की हद ना रही
तेरे एहसान बेशुमार हुए
तेरे एहसान बेशुमार हुए
सूरमा-ए-चश्म-ए-ऐतबार हुए
मर के हम खाक-ए-राहे यार हुए

ज़ब्ते घाम तक है ज़िंदगी अपनी
ज़ब्ते घाम तक है ज़िंदगी अपनी
मर मिटाएँगे जो बेकरार हुए
मर मिटाएँगे जो बेकरार हुए
सूरमा-ए-चश्म-ए-ऐतबार हुए
मर के हम खाक-ए-राहे यार हुए

अब ना वो शौक है ना जोश-ओ-खरोश
अब ना वो शौक है ना जोश-ओ-खरोश
सब तेरी याद पे निसार हुए
सब तेरी याद पे निसार हुए
सूरमा-ए-चश्म-ए-ऐतबार हुए
मर के हम खाक-ए-राहे यार हुए
मर के हम खाक-ए-राहे यार हुए

Wissenswertes über das Lied Mur Ke Hum Khak-e-raahay Yaar Huay von Hariharan

Wer hat das Lied “Mur Ke Hum Khak-e-raahay Yaar Huay” von Hariharan komponiert?
Das Lied “Mur Ke Hum Khak-e-raahay Yaar Huay” von Hariharan wurde von Maulana Hasrat Mohani komponiert.

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