Din Kuch Aise Guzarta Hai Koi

Gulzar

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई

आईना देख कर तसल्ली हुई
आईना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
हम को इस घर में जानता है कोई
हम को इस घर में जानता है कोई
हम को इस घर में जानता है कोई

पक गया है शजर पे फल शायद
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर से पत्थर उछालता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई

तुम्हारे गम की डली उठा कर, जबा पे रख ली है देखो मैंने
ये कतरा-कतरा पिघल रही है, मै कतरा- कतरा ही जी रहा हूँ

देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
जैसे हम को पुकारता है कोई
जैसे हम को पुकारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

Wissenswertes über das Lied Din Kuch Aise Guzarta Hai Koi von Jagjit Singh

Wann wurde das Lied “Din Kuch Aise Guzarta Hai Koi” von Jagjit Singh veröffentlicht?
Das Lied Din Kuch Aise Guzarta Hai Koi wurde im Jahr 2004, auf dem Album “Din Kuch Aise Guzarta Hai” veröffentlicht.
Wer hat das Lied “Din Kuch Aise Guzarta Hai Koi” von Jagjit Singh komponiert?
Das Lied “Din Kuch Aise Guzarta Hai Koi” von Jagjit Singh wurde von Gulzar komponiert.

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