Phir Se Mausam Bahaaron

Zahid

फिर से मौसम बहारों का आने को है
फिर से रंग-ए-ज़माना बदल जाएगा
फिर से मौसम बहारों का आने को है
फिर से रंग-ए-ज़माना बदल जाएगा
अब की बज्म-ए-चराग़ां सजा लेंगे हम
ये भी अरमान दिल का निकल जाएगा

आप कर दें जो मुझपे निगाह-ए-करम
मेरी उल्फ़त का रह जाएगा कुछ भरम
आप कर दें जो मुझपे निगाह-ए-करम
मेरी उल्फ़त का रह जाएगा कुछ भरम
यूँ फ़साना तो मेरा रहेगा यहीं
सिर्फ़ उनवान उसका बदल जाएगा

फीकी फीकी सी क्यूं शाम-ए-मैख़ाना है
लुत्फ़-ए-साक़ी भी कम ख़ाली पैमाना है
फीकी फीकी सी क्यूं शाम-ए-मैख़ाना है
लुत्फ़-ए-साक़ी भी कम ख़ाली पैमाना है
अपनी नज़रों से ही कुछ पिला दीजीए
रंग महफ़िल का ख़ुद ही बदल जाएगा

मेरे मिटने का उनको ज़रा ग़म नहीं
ज़ुल्फ भी उनकी ऐ दोस्त बरहम नहीं
मेरे मिटने का उनको ज़रा ग़म नहीं
ज़ुल्फ भी उनकी ऐ दोस्त बरहम नहीं
अपने होने न होने से होता है क्या
काम दुनिया का यूँ ही तो चल जाएगा

आप ने दिल जो ज़ाहिद का तोड़ा तो क्या
आप ने उसकी दुनिया को छोड़ा तो क्या
आप ने दिल जो ज़ाहिद का तोड़ा तो क्या
आप ने उसकी दुनिया को छोड़ा तो क्या
आप इतने तो आख़िर परेशां न हों
वो सम्भलते सम्भलते सम्भल जाएगा
फिर से मौसम बहारों का आने को है
फिर से रंग-ए-ज़माना बदल जाएगा
अब की बज्म-ए-चराग़ां सजा लेंगे हम
ये भी अरमान दिल का निकल जाएगा

Wissenswertes über das Lied Phir Se Mausam Bahaaron von Jagjit Singh

Wer hat das Lied “Phir Se Mausam Bahaaron” von Jagjit Singh komponiert?
Das Lied “Phir Se Mausam Bahaaron” von Jagjit Singh wurde von Zahid komponiert.

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