Sarakti Jaye Rukh Se Naqab

Ameer Meenai (Traditional), Jagjit Singh

सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता
सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

जवाँ होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया परदा
जवाँ होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया परदा
हया यकलख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता

शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब, आहिस्ता आहिस्ता

वो बेदर्दी से सर काटें अमीर और मैं कहूँ उनसे
वो बेदर्दी से सर काटें अमीर और मैं कहूँ उनसे
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता
सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

Wissenswertes über das Lied Sarakti Jaye Rukh Se Naqab von Jagjit Singh

Wer hat das Lied “Sarakti Jaye Rukh Se Naqab” von Jagjit Singh komponiert?
Das Lied “Sarakti Jaye Rukh Se Naqab” von Jagjit Singh wurde von Ameer Meenai (Traditional), Jagjit Singh komponiert.

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