Kabhi Aar Kabhi Paar
Majrooh Sultanpuri, Pankaj Ahuja
कभी आर, कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
कभी आर, कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
सैयाँ, घायल किया रे तूने मोरा जिगर
कभी आर, कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
कभी आर, कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
सैयाँ, घायल किया रे तूने मोरा जिगर
कितना सँभाला बैरी दो नैनों में खो गया
कितना सँभाला बैरी दो नैनों में खो गया
देखती रह गई मैं तो जिया तेरा हो गया
देखती रह गई मैं तो जिया तेरा हो गया
दर्द मिला ये जीवन भर का
मारा ऐसा तीर नज़र का
दर्द मिला ये जीवन भर का
मारा ऐसा तीर नज़र का
लूटा चैन-ओ-क़रार
कभी आर, कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
कभी आर, कभी पार लागा तीर-ए-नज़र
सैयाँ, घायल किया रे तूने मोरा जिगर