Kaha Hai Tu
जो भी है मेरा बुरा वक़्त
वो रहेगा हमेशा क्या
मैं मालिक से मांगू ना कुछ भी तो
हिस्से का देगा क्या
मैं माता जब जौंगा टेकने
पड़ेगा कुछ देना क्या
और मलिक से मेरा सवाल
तू हैं फिर भी मैने तुझे क्यूँ हैं देखा ना
कहाँ हैं तू बता ना मौला रे कहाँ है तू
कहाँ हैं तू अमावस की आँधी में शमा है तू
कहाँ हैं तू ज़ालिम दुनिया के ज़ख़्मों की डॉवा हैं तू
कहाँ हैं तू देखे सब कुछ फिर च्चिपके क्यूँ खड़ा है तू
किसी को याद तेरा चेहरा तो
किसी के लिए तेरा कोई चेहरा ही नही
कोई लेता नाम तेरा चिल्लाके
तो कोई कुछ हैं कहता ही नही
किसी के लिए तू हैं हर जगह
किसी के लिए तो वजूद तेरा ठहरा ही नही
किसी की किस्मत तू, किसी के लिए
बदक़िस्मती का तू चेहरा ही सही
ऐसी तैसी होती जब मैं माता टेकून दर पर
कैसे ऐसे चीज़ें होती जो ना चाहु पाना अक्सर
वैशी जीटा, नेकी करता वो बंदा जाता मारकर
बहकी-बहकी बातें ये दिखना चाहूं तुझको दर्पण
बूढ़ा बाप, निकले बेटा घर्से बाहर
बेटी हो जवान, निकले बाप घर्से बाहर
भिकारी हो द्वार, निकले बेटी घर्से बाहर
फिर वो बनी मा, बेटी पैदा हो तो कोसे यह समाज
धोखे हैं जनाब चैन से सोते हैं खराब
जात-पात के नाम पे लूटे खुल्ले आम
काटते गले सारे आम बंदे लदे पड़े सब
अधर्म उनके साथ जो हो धर्म के खिलाफ
इनको शरम नही ज़रा पहने मज़हब का लिबास
यह भोले तू करेगा इनके करम का हिसाब
बता तेरी करे ना ये दर्ज़ सब किताब
अगर हन तो ना बाँध आँखों से देना इंसाफ़
कहाँ है तू बता ना मौला रे कहाँ है तू
कहाँ है तू अमावस की आँधी में शमा है तू
कहाँ है तू ज़ालिम दुनिया के ज़ख़्मों की डॉवा है तू
कहाँ है तू देखे सब कुछ फिर च्चिपके क्यूँ खड़ा है तू
क्यूँ पैसे की वजह मारे ग़रीब?
क्यूँ पैसा लिख दे यहाँ नसीब?
क्यूँ पैसा देख दिखे तहज़ीब?
क्यूँ पैसा सबसे ज़रूरी चीज़?
ऐसा है क्या?
की पैसा है तो सबकुछ जैसा चाहो वैसा है ना
तू बैठा है ना पैसे में तू रहता है ना
जो देखे चेहरा तेरा कैसे शुकराना वो कहता है ना
खुदा बना पैसा बैठा
कीमत हैं मौत की कीमत हैं साँस की
केमाट हैं आपकी कीमत हैं ख्वाब की
कीमत क्या सुबह और शाम की?
कीमत इंसाफ़ की कीमत हैं हार की
कीमत हैं जीत हार पुण्या पाप
और इश्स समाज की
पहलू दो हैं सिक्के के एक पैसा और एक खुदा
पर खुदा भी सिक्के पे हुआ तो सिक्का ही खुदा
सिक्का क़ाफी खुदा राज़ी खुदा राज़ी सिक्का भारी
मैं गुस्ताख़ी पैसे को खुदा
मान-ने की फिर करूँ क्यूँ ना करू क्यूँ ना
मैं गुस्ताख़ी पैसे को खुदा
मान'ने की फिर करूँ क्यूँ ना करूँ क्यू ना
मैं गुस्ताख़ी पैसे को खुदा मान-ने की फिर करूँ क्यूँ ना
कहाँ है तू
शायद पैसा ही मौला का नया हैं रूप
कहाँ है तू
ज़ालिम दुनिया से भी ज़ालिम बड़ा हैं तू
कहाँ है तू
खुदा पैसा नही फिर पैसा खुदा हैं क्यूँ?
कहाँ है तू
खुदा पैसा नही फिर पैसा खुदा हैं क्यूँ?