Nikle The Kabhi Hum Ghar Se

Javed Akhtar

निकले थे कभी हम घर से
घर दिल से मगर नहीं निकला
घर बसा है हर धड़कन में
क्या करें हम ऐसे दिल का
बड़ी दूर से आये हैं
बड़ी देर से आये हैं
पर ये न कोई समझे
हम लोग पराये हैं
कट जाये पतंग जैसे
और भटके हवाओं में
सच पूछो तो ऐसे
दिन हमने बिताये हैं
पर ये न कोई समझे
हम लोग पराये हैं

यही नगर यही है बस्ती
आँखें थी जिससे तरसती
यहाँ खुशियाँ थी कितनी सस्ती
जानी पहचानी गलियाँ
लगती हैं पुरानी सखियाँ
कहाँ खो गयी वो रंग रलियाँ
बाजार में चाय के ढाबे
बेकार के शोर शराबे
वो दोस्त वो उनकी बातें
वो सारे दिन सब रातें
कितना गहरा था गम
इन सब को खोने का
यह कह नहीं पाये हम
दिल में ही छुपाये हैं
पर ये न कोई समझे
हम लोग पराये हैं
निकले थे कभी हम घर से
घर दिल से मगर नहीं निकला
घर बसा है हर धड़कन में
क्या करें हम ऐसे दिल का
क्या हमसे हुआ क्या हो न सका
पर इतना तो करना है
जिस धरती पे जन्मे थे
उस धरती पे मरना है
जिस धरती पे जन्मे थे
उस धरती पे मरना है

Wissenswertes über das Lied Nikle The Kabhi Hum Ghar Se von Pritam

Wer hat das Lied “Nikle The Kabhi Hum Ghar Se” von Pritam komponiert?
Das Lied “Nikle The Kabhi Hum Ghar Se” von Pritam wurde von Javed Akhtar komponiert.

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