Lakshmi Amrit Bhakti
जय लक्ष्मी नारायणी, मेरी सुनो पुकार
सुख संपति सौभाग्य से, पूर्ण हो घर द्वार
अष्ट सिद्धि की स्वामिनी, तुम महालक्ष्मी माता
लाज रखो वरदायिनी, भक्तों की शुभदाता
लक्ष्मी दया से चलता है, ये सारा संसार
भाग्यदायिनी कल्याणी, करती जग उद्धार
महालक्ष्मी दयामयी, ममतामयी हैं माता
नारायणी के द्वार से, कोई न खाली जाता
कैसा निर्धन क्यों न हो, करता माँ का ध्यान
धन की वर्षा करती माँ, कर देती धनवान
लक्ष्मी भक्ति से सिद्धि मिले, बढ़ता है व्यापार
धन दौलत और धान्य से, भर जाते भंडार
जिस पर लक्ष्मी की कृपा, सब सुख उसके पास
सब पर कृपा बनी रहे, यही करें अरदास
दीपावली के शुभ दिन पर, करिए मिलकर पुजा
दीप जलाकर भक्ति करो, ऐसा सुख नहीं दूजा
देव असुर ने बीच समंदर, सागर मंथन किया था मिलकर
चौदह रत्न थे निकले ऊपर,
माँ लक्ष्मी थी सबसे सुंदर
सबने मिलकर रचा स्वयंवर, विष्णु बने महालक्ष्मी के वर
जय जय कार हुआ तब भारी,
हरि ने पाई सिंधु कुमारी
कर धन कलश मुकुट है साजे, कमलासन पर लक्ष्मी विराजे
लाल श्रृंगार चतुर्भुज धारी,
सुंदर नयन लगें अति प्यारी
गज उलूक हैं माँ के वाहन, माँ लक्ष्मी का रूप सुहावन
विष्णु संग वैकुंठ विराजे,
श्री हरि के चरणों में साजे
लक्ष्मी जनकसुता बन आईं, सीता श्री रघुवर ने पाईं
रुक्मणि बन अवतार लिया था,
कृष्ण का जीवन पूर्ण किया था
तुम ही विट्ठल की रखुमाई, तुलसी तुम वृंदा कहलाई
राजा बलि को भाई बनाया,
रक्षाबंधन पर्व मनाया
माता लक्ष्मी की लीला, पढ़े सुने जो कोय
कष्ट मिटे सब जीवन के, तन मन पावन होय
आदिलक्ष्मी भृगु की पुत्री, जग पालन करती जगदात्री
धान्य और भोजन की स्वामिनी,
धान्यलक्ष्मी माँ अन्न दायिनी
हे वैष्णवी तुम विजय दायिनी, धैर्यलक्ष्मी संतोष प्रदायिनी
गजलक्ष्मी माँ का गज वाहन,
प्राणनाथ जिनके मधुसूदन
गरुड सजें संतानलक्ष्मी, पुत्र पौत्र संतान की दात्री
विजयलक्ष्मी विजय हैं देती,
हर घर में है पूजा होती
बुद्धि विद्या की तुम स्वामिनी, विद्यालक्ष्मी नवनिधि दायिनी
धनलक्ष्मी धन वर्षा करती,
सुख संपति वैभव माँ देती
अष्टलक्ष्मी माता के, सुंदर ये अवतार
भक्ति करके माता की, हो जाता उद्धार