Marham

VIBHAS, ABHENDRA KUMAR UPADHYAY

वो जो कभी सर्दियो में
धूप सी थी
गर्मियो में छाव सी
मौजूदगी तेरी कहा गयी
वो पतझड़ के मौसमो में
एक हर्याली सी जो लाए थे
वो बारिशे कहाँ चली गयी
अब आँखे मेरी तुझे ढूँढा करे
तू मिले ना अगर तो यह रोया करे
फ़ासले यह कम करू
मैं किसी तरह
दर्द में मरहम बनू
मैं किसी तरह
फ़ासले यह कम करू
मैं किसी तरह
दर्द में मरहम बनू
मैं किसी तरह

आ आ आ आ आ आ आ आ

मेरे माथे पे सिलवटे जो है
आके एन्हे मिटा दो ना
आँसू मेरे भटकते फिरते है
आके इन्हे पनाह दो ना
कुछ कमी सी है
कुछ नमी सी है
आँसुओ से भरा हू मैं
बंद तेरी आँखें जब से है
साँस रोके खड़ा हू मैं
साँस रोके खड़ा हू मैं
ज़ख़्म को तेरे भरू
मैं किसी तरह
दर्द में मरहम बनू
मैं किसी तरह

जिन दीवारो को साथ में
मेरे मिलके तूने सजाया था
उन दीवारो रंग ही नही
जो कभी तेरा साया था
मेरे आँगन में एक हँसी तेरी
जब कभी भी खनकती थी
गम सभी डोर होते थे
मेरे सारी खुशिया महकती थी
सारी खुशिया महकती थी
साथ में हार्दूम राहु
मैं किसी तरह
दर्द में मरहम बनू
मैं किसी तरह

Wissenswertes über das Lied Marham von Sonu Nigam

Wer hat das Lied “Marham” von Sonu Nigam komponiert?
Das Lied “Marham” von Sonu Nigam wurde von VIBHAS, ABHENDRA KUMAR UPADHYAY komponiert.

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