Bulandiyaan

Abhendra Kumar Upadhyay

आँधियो को पेहेन पाउ में तू बढ़ाता
चल कदम होसलो के चुटकियो से
तू मसल दे सारे गम ज़िद को अपनी पैरी कर
होश खिले तू काटे जा
हर ना मुमकिन मंज़िल तू अपने हिस्से बाटे जा
लाखो सूरज जला तू खुद में
हो पर्वत से बड़े सपने

बुलंदिया रगो में भी (बुलंदिया रगो में भी)
बुलंदिया नसो में भी (बुलंदिया नसो में भी)

आँखो में कुछ पाने का जब
कोई सपना गुज़रेगा
एक घूँट में ये समंदर
फिर गले से उतरेगा
अपने पैरो को यकीन तू हा दिला के देख ले
भेड़ियो की चोट से ज़हरा में पानी निकलेगा
ना खुद को बांधो किसी भी हद में
अगर कुछ करना हो इस जग में

बुलंदिया रगो में भी (बुलंदिया रगो में भी)
बुलंदिया नसो में भी हा हा (बुलंदिया नसो में भी)

आ आ आ आ
हा हा हा हा हा
सांसो की इन तिलियो से तू इरादो को जला
रास्तो के पत्थरो को ठोकरो से दे उड़ा
धड़कने एक दिन तेरी भी देगी तुझे शाबासिया
दिल के कोने में तूफा को तू जगा दे ज़रा
हथेलियो पे वक़्त को रख ले कामयाबी का मज़ा चख ले

बुलंदिया रगो में भी (बुलंदिया रगो में भी)
बुलंदिया नसो में भी (बुलंदिया नसो में भी)

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