Pehli Si Muhabbat [Unplugged]

Asad Shah

तेरे संग गुजरे मेरे जो लम्हे
तुम से वो मांगु
मैं तलबगार हूँ
तुमसे थोड़ी मोहलत मांगु
तू वही मैं वोही
है मगर बेबसी
ज़िंदगी को गवारा
अब कैसे करे
दिल के दरवाजे पे
फिर से तेरी दस्तक मांगु
तुझसे ही फिर अपनी
पेहली सी मोहब्बत मांगु
वो चाह जो हम में थी
फिर से वोही चाहत मांगु
तुझसे ही फिर अपनी
पेहली सी मोहब्बत मांगु

तनहाई में मर जाएँ
क्या फिर आओगे
इस तरहा से क्या हरपल
तुम तड़पाओगे
गैर की तरहा से
ये तकलुफ़्फ़ कैसा
ये मूरवत्त है कैसी
ये तारुफ़्फ़ कैसा
मैं ने अपने ही हाथों से
गवाया है तुझे
आशना कोई और अब भाया है तुझे
दिल के दरवाजे पे
फिर से तेरी दस्तक मांगु
तुझसे ही फिर अपनी
पेहली सी मोहब्बत मांगु

वो चाह जो हम में थी
फिर से वोही चाहत मांगु
तुझसे ही फिर अपनी
पेहली सी मोहब्बत मांगु
हम्म, हम्म

Wissenswertes über das Lied Pehli Si Muhabbat [Unplugged] von Ali Zafar

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Das Lied “Pehli Si Muhabbat [Unplugged]” von Ali Zafar wurde von Asad Shah komponiert.

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