Salamat Rahe
Hussain Haidry
रात गुज़री है भी या नही
बाकी रही आँखों में
शामिल हुई यादों में
हूँ मैं ज़िंदा ये भी कॅम नही
दुनिया जहा थी है वही
ना जाने मिले वो पल कहा
मुझे वो कल
जो बीता है भूलना है
मेरा जहा ऊओ
खोया कहा ऊओ
रहे जहा वो
सलामत रहे
मेरा निशा ऊओ
मिले कहा ऊओ
रहे जहा वो
सलामत रहे
माज़ी के ज़ख़्म सारे
मरहम को है पुकारे
वक़्त से ये भर ही जाने है
लेकिन जो धोखे खाए
कोहरे-से थे जो च्चाए
दाघ उसके रह भी जाने है
कदमों को कही
मिल जाए ज़मीन
जो बीता है
भुलाना है
मेरा जहा ऊओ
खोया कहा ऊओ
रहे जहा वो
सलामत रहे
मेरा निशा ऊओ
मिले कहा ऊओ
रहे जहा वो
सलामत रहे
रहे सलामत हमेशा
रहे सलामत हमेशा वो सलामत रहे
रहे जहा वो सलामत रहे