Machal Kar Jab Bhi Ankhon Se

Gulzar, Kanu Roy

मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते है दो आंसू
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते है दो आंसू
सुना है आबशारों को बड़ी
तकलीफ होती है
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते है दो आंसू
मचल के जब भी आँखों से
ख़ुदारा अब तो बुझ जाने दो इस
जलती हुई लौ को
ख़ुदारा अब तो बुझ जाने दो इस
जलती हुई लौ को
चरागों से मज़ारो को बड़ी
तकलीफ होती है
चरागों से मज़ारो को बड़ी
तकलीफ होती है
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते है दो आंसू
मचल के जब भी आँखों से
कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से
पूछ बैठे है
कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से
पूछ बैठे है
क्या सच मुच दिल के मारो को बड़ी
तकलीफ होती है
क्या सच मुच दिल के मारो को बड़ी
तकलीफ होती है
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते है दो आंसू
मचल के जब भी आँखों से
तुम्हारा क्या तुम्हे तो
राह दे देते है कांटे भी
तुम्हारा क्या तुम्हे तो
राह दे देते है कांटे भी
मगर हम खाकज़ारो को बड़ी
तकलीफ होती है
मगर हम खाकज़ारो को बड़ी
तकलीफ होती है
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते है दो आंसू
सुना है आबशारों को बड़ी
तकलीफ होती है
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते है दो आंसू
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते है दो आंसू
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते है दो आंसू

Wissenswertes über das Lied Machal Kar Jab Bhi Ankhon Se von Bhupinder Singh

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Das Lied “Machal Kar Jab Bhi Ankhon Se” von Bhupinder Singh wurde von Gulzar, Kanu Roy komponiert.

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