Rooh [Rooh]

KULWINDER SINGH BAJWA, RAVI KUMAR

कभी इस हवा फिजा में
मिले मुझे तेरी ही खुशबू
लगे के जैसे उन्लियोन से
सांसें तेरी मैं छू रहा हूं
लगे के हर कदम पे मैं हूं
तेरा था तुझ में खो गया हूं
खाब से हूं मैं जिंदा हूं
हकीकत से मैं खफा हूं

डगर डगर मैं बेखबर सा
कदम कदम गुजर रहा हूं
इधर उधर मैं बेसबर सा
तेरी नज़र को दूँढ़ता हूँ
तो चल फ़िर मिले यूँ
तो चल फिर मिले यूँ
तू हवा मैं धुँआ
जे दूरियां क्यु दरमियान
क्यों मिटा नहीं जे फासला
ए खुदा कहीं तो मिल वी जा
मेरी रूह से मुझे मिला
मेरी रूह से मुझे मिला

मैं भी तेरी तरह हूं तनहा
बेगानी सी खुशी गुम-ए है
कहीं भी कुछ नहीं है मुझ सा
कहीं भी तुझ सा कुछ नहीं है

डागर डागर मैं बेखबर सा
कदम कदम गुजर रहा हूं
इधर उधर मैं बेसबर सा
तेरी नज़र को दूँढ़ता हूँ
तो चल फ़िर मिले यूँ
तो चल फ़िर मिले यूँ
तू हवा मैं धुँआ
ये दूरियां क्यु दरमियान
क्यों मिटा नहीं जे फासला
ए खुदा कहीं तो मिल वी जा
मेरी रूह से मुझे मिला
मेरी रूह से मुझे मिला
मुझे को मिला

तू ही मेरा खलीपन
हमसफ़र मेरा
तू ही आवरगी
तू मेरा पता
तेरे होंठो में
कैद चाहत थे
तेरी अखों में
बंद बेलफज़ी
खामोशियों को
मैं सुन रहा
ए खुदा ए खुदा
ए खुदा ए खुदा
Mista Baaz

Wissenswertes über das Lied Rooh [Rooh] von Kamal Khan

Wer hat das Lied “Rooh [Rooh]” von Kamal Khan komponiert?
Das Lied “Rooh [Rooh]” von Kamal Khan wurde von KULWINDER SINGH BAJWA, RAVI KUMAR komponiert.

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