Apni Ulfat Pe Zamane Ka

Hasrat Jaipuri, Shankar-Jaikishan

अपनी उल्फ़त पे ज़माने का न पहरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता
प्यार की रात का कोई न सवेरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता
अपनी उल्फ़त पे ज़माने का न पहरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता

पास रहकर भी बहुत दूर बहुत दूर रहे
एक बन्धन में बँधे फिर भी तो मजबूर रहे
पास रहकर भी बहुत दूर बहुत दूर रहे
एक बन्धन में बँधे फिर भी तो मजबूर रहे
मेरी राहों में न उलझन का अँधेरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता

दिल मिले आँख मिली प्यार न मिलने पाए
बाग़बाँ कहता है दो फूल न खिलने पाएँ
दिल मिले आँख मिली प्यार न मिलने पाए
बाग़बाँ कहता है दो फूल न खिलने पाएँ
अपनी मंज़िल को जो काँटों ने न घेरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता

अजब सुलगती हुई लकड़ियाँ हैं जग वाले
मिलें तो आग उगल दें कटें तो धुआँ करें
अजब सुलगती हुई लकड़ियाँ हैं जग वाले
मिलें तो आग उगल दें कटें तो धुआँ करें
अपनी दुनिया में भी सुख चैन का फेरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता
अपनी उल्फ़त पे ज़माने का न पहरा होता
तो कितना अच्छा होता
तो कितना अच्छा होता

Wissenswertes über das Lied Apni Ulfat Pe Zamane Ka von Lata Mangeshkar

Wer hat das Lied “Apni Ulfat Pe Zamane Ka” von Lata Mangeshkar komponiert?
Das Lied “Apni Ulfat Pe Zamane Ka” von Lata Mangeshkar wurde von Hasrat Jaipuri, Shankar-Jaikishan komponiert.

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