More Dwar Khule Hai
मोरे द्वार खुले है
आने वाले कब आओगे
जैसे उगते चाँद को देखे
बन में कोई चकोरा
जैसे पतझड़ की ऋतु में
भटके है राष्टा भावरा
वैसे मेरा मन रो रोके
वैसे मेरा मन रो रोके
गये प्रीतम मोरा
आना हो अब आओ
फिर माटिकी ढेरी
के बिन तुम क्या पाओगे
मोरे द्वार खुले है
आने वाले कब आओगे
ये तेरी और किसी का
ये जलना है जीते जी का
ये जलना है जीते जी का
खुली आँहक के खेल है सारे
खुली आँहक के खेल है सारे
सुन लो सुनलो इश्क़ पुकारे
आना है अब आओ
फिर माटिकी ढेरी
के बिन तुम क्या पाओगे
मोरे द्वार खुले है
आने वाले कब आओगे