Ruk Se Jara Naqaab - Mere Huzoor

JAIKSHAN SHANKAR, JAIPURI HASRAT

अपने रुख पे निगाह करने दो
खूबसूरत गुनाह करने दो
रुख से पर्दा हटाओ जान-ए-हया
आज दिल को तबाह करने दो
रुख से ज़रा नक़ाब उठा दो, मेरे हुज़ूर
रुख से ज़रा नक़ाब उठा दो, मेरे हुज़ूर
जल्वा फिर एक बार दिखा दो, मेरे हुज़ूर

वो मर्मरी से हाथ वो महका हुआ बदन
वो मर्मरी से हाथ वो महका हुआ बदन
टकराया मेरे दिल से, मुहब्बत का एक चमन
मेरे भी दिल का फूल खिला दो, मेरे हुज़ूर
रुख से ज़रा नक़ाब उठा दो, मेरे हुज़ूर
जल्वा फिर एक बार दिखा दो, मेरे हुज़ूर

हुस्न-ओ-जमाल आपका शीशे में देख कर
हुस्न-ओ-जमाल आपका शीशे में देख कर
मदहोष हो चुका हूँ मैं जलवों की राह पर
ग़र हो सके तो होश में ला दो, मेरे हुज़ूर
रुख से ज़रा नक़ाब उठा दो, मेरे हुज़ूर
जल्वा फिर एक बार दिखा दो, मेरे हुज़ूर

तुम हमसफ़र मिले हो मुझे इस हयात में
तुम हमसफ़र मिले हो मुझे इस हयात में
मिल जाए चाँद जैसे कोई सूनी रात में
जागे तुम कहाँ ये बता दो, मेरे हुज़ूर
रुख से ज़रा नक़ाब उठा दो, मेरे हुज़ूर
जल्वा फिर एक बार दिखा दो, मेरे हुज़ूर

Wissenswertes über das Lied Ruk Se Jara Naqaab - Mere Huzoor von Mohammed Rafi

Wer hat das Lied “Ruk Se Jara Naqaab - Mere Huzoor” von Mohammed Rafi komponiert?
Das Lied “Ruk Se Jara Naqaab - Mere Huzoor” von Mohammed Rafi wurde von JAIKSHAN SHANKAR, JAIPURI HASRAT komponiert.

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