Vaaqif
उसूलों की जो थी दुनिया अब है कहाँ बोलो
बातें किताबी जो सुनी हमें न यकीन देखो
गुफ्तगू ऐसे मज़हबी पर अब मुझको गुमान
हूँ वाकिफ न हूँ नादान कोई न फिकरे जहां
क्यूं नामंजूर ओ हुजूर किरदार है यहाँ
इस कहानी का न मगरूर बेकसूर हूँ गुँजती है जो दिल की जुबां
कहता कोई थी रौशनी जहाँ
अब है बाकी जलता आशियां
नासमझ तुझको मुबारक ये गिरता जहां
है मुनासिब हर अंजाम वाकिफ हूँ न नादान
ये मंज़र है अगर पर याद है कहाँ
पूछूँ मैं यहाँ ओ महफूज बेलगाम अरमानों में डूबी बेगरज उड़ान
उसूलो की जो दुनिया थी अब
है कहा बोलो
ये मंजर है अगर पर याद है कहा पूंछू मे यहाँ
ओ महफूज बेलगाम अरमानों में डूबी बेगरज उड़ान